Kalka prashad Ji Biography in Hindi
Kalka prashad Ji Biography in Hindi
Kalka prashad Ji, who contributed a lot to the history of Kathak dance, today we will know about his biography.
Maharaj Kalka prashad Ji was Bindadin Ji’s younger brother and a famous dancer like him. They were considered to be the pillars of the Lucknow Gharana. His personality was very attractive. Kalika Prashad Ji preferred to live in Banaras and promoted Kathak-style dance and Thumri singing.
Both these brothers were responsible for promoting Kathak to a high rank of art and beauty. Apart from dance, tabla and pakhawaj were instrumental and expert singers, especially with a deep knowledge of Thumri. He was an expert in Abhinaya – expressing it in Thumri songs and performing Shringar Rasa did it efficiently. Most of the famous female Thumri singers of that time were his disciples. Kalika Prashad was a simple and social person.
His work in kathak
Maharaj used to perform music from the beginning with the dance of Bindadin. He was the shelter of Nawab Rampur. He was very stubborn in nature, but an object named vanity was not in his character and it is said that once he had decided, he would fulfill it.
Once upon a time, upon coming to Chid, he imparted dance education to a tawaif named “Biggan Bee” who was very thick, black, and smallpox, but when she used to dance she would hide all her defects He respected his elder brother Bindadin very much. And had been with him all his life for the advancement of Kathak dance. His way of life was also very simple.
Maharaj Kalka prashad was never proud of his achievements. He had a life of penance. He died in Lucknow around 1910 AD. Kalka Prashad ji had three sons – Achhan Maharaj, Baijnath Prashad (Luchhu Maharaj), and Shambhu Maharaj, who have also been famous dancers of the dance world.
Kalkaprashad Ji Biography in Hindi / कालकाप्रसाद जी की जीवन-यात्रा
कालकाप्रसाद जी जिनहोने कथक नृत्य के इतिहास में अपना बहुत योगदान दिया आज हम उन्ही की जीवनी के बारे में जानेगे।
महाराज कालकाप्रसाद जी बिंदादीन जी के छोटे भाई और उन्ही के समान प्रसिद्ध नर्तक थे । वे लखनऊ घराने के स्तंभ माने जाते थे। इनका व्यक्तित्व बहुत ही आकर्षक था। कालिका प्रसाद जी ने बनारस में रहना पसंद किया और कथक शैली के नृत्य और ठुमरी गायन का प्रचार किया ।
ये दोनों भाई कथक को कला और सौंदर्य के उच्च पद पर बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार थे। नृत्य के अतिरिक्त तबला व् पखवाज वादन और एक विशेषज्ञ गायक थे, खासकर उन्हें ठुमरी का गहरा ज्ञान था। वह अभिनाय में एक विशेषज्ञ थे – ठुमरी गीतों में भावनाओं को व्यक्त करना और श्रृंगार रस का प्रदर्शन करना यह बड़ी कुशलता से करते थे। उस समय की कई प्रसिद्ध महिला ठुमरी गायिका उनकी शिष्या थीं। कालिका प्रसाद एक सरल और सामाजिक व्यक्ति थे ।
कथक में उनका काम
महाराज बिंदादीन के नृत्य के साथ प्रारंभ से ही संगीत करते थे । इन्हे नवाब रामपूर का आश्रय था। ये बहुत जिददी स्वभाव के थे पर घमंड नामक वस्तु उनके चरित्र में नहीं था और कहा जाता हे की एक बार जो निश्चय कर लेते थे उसे पूरा कर दिखाते थे।
एक बार की बात हे कि चिद मे आने पर इन्होने “बिग्गन बी” नामक एक ऐसी तवायफ को नृत्य की शिक्षा प्रदान की जो बोहत मोटी, काली व चेचक के दाग वाली थी, किन्तु वह जब नाचने खड़ी होती थी तब उसके सारे दोष छुप जाते थे। ये अपने बड़े भाई बिंदादीन का बहुत सम्मान करते थे। और सारा जीवन उनके साथ कथक नृत्य की उन्नति के लिए प्रयत्नशील रहे।उनका रहन–सहन भी अत्यंत सादा हुआ करता था।
महाराज कालका प्रसाद जी को अपनी उपलब्धियों पर कभी गर्व नहीं था। उनके पास तपस्या का जीवन था। इनकी मृत्यु सन 1910 ईस्वी के लगभग लखनऊ में हुई। कालका प्रसाद जी के तीन बेटे थे – अच्चन महाराज, बैजनाथ प्रसाद (लुच्चु महाराज) और शंभू महाराज ये भी नृत्य जगत के प्रसिद्ध नर्तक रहे हैं।।